Monday 19 September 2011

VIKASINI !!

VIKASINI !!

VIKASINI !!
Antarmanacha thet vedh ghenari shakti mhanaje vikasini
manala ved lavate ti pan vikasini
manushyamadhye prembhav jagavate ti suddha vikasini
Manasana manasamaddhye ante ti hi vikasini
Vegalepan japnari hi pan vikasini
... FACEBOOK CHI MALIKA SUDDHA vikasini
Allad swabhavachi parpakva vicharachi sojwal vikasini
Amchi sarvanchi awadti vikasini
TEJASWI cheheryachi vikasini
BOLKI pan ABOL ashi vikasini

Kadhi kadhi shunyat harvun ka jat asel hi Hasari vikasini?.
 BY ATUL NIKUMBH!!

स्पर्श रेशमी !! by Vikasini Chavan on Wednesday, September 14, 2011 at 9:48am

स्पर्श रेशमी !!

by Vikasini Chavan on Wednesday, September 14, 2011 at 9:48am
रेशमी धागा !
अलवार हृदयाच्या रेशीम गाठी
खेचू नकोस अशा घाईने उगी
रेशीमगाठी ह्या घट्ट होतील उगी
अलवारच राहू दे ,थोडी थोडी ढील दे
भावबंध थोडेसे हे मोकळे  होवू दे
गारवा प्रीतीचा थोडा मनात राहू दे
श्वास हे थोडे गुलाबी  मुक्त राहू  दे
देहभान हे थोडेसे हरपून जावू दे
आठवणींत थोडेसे बेचैन  होवू दे
स्वप्नात थोडेसे हरवून जावू  दे
रेशमी धागा हा रेशमीच राहू दे !!
स्पर्श रेशमी हे रेशमीच राहू दे !!
विकासिनी !!

वीरान महफ़िल!! by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 2:12pm

वीरान महफ़िल!!

by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 2:12pm
वीरान महफ़िल!!
महफ़िल मैं दम घुटता है
वीरानिया हमें रास आई
फुलोसे ज्यादा
काटोंकी सेज ही पाई
महक फूलोंकी
हमें रास न आई
सुखी जब पत्तिया
तब बात ये समज आई
विकासिनी !!

गहराइ रिश्तोंकी !! by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 3:02pm

गहराइ रिश्तोंकी !!

by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 3:02pm
गहराइ रिश्तोंकी !!
यू  तो कैसे कैसे रिश्ते बनते है
और बना लेता है कैसे हर कोई
दिलके रिश्तोंकी गहराइया समज़ना
आम इन्सान के बस की बात नहीं
जख्म खाओगे दिलपे लाख
मगर दिल का जख्म समज़ना
हर किसीके बस  की बात नहीं
रंजिशे दिल समज़ना
हर किसीको आता नहीं
रिश्तों के इस बाज़ार मैं
दिल तनहा है हर वक्त
फिर भी हरदम धड़कना
इसकी आदत तो है नहीं
काफ़िर निगाहे भी
बोलती है बहोत कुछ
शब्दोसे बाया करने की
किसीको जरूरत तो है नहीं
विकासिनी!!

मदारी !! by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 4:01pm

मदारी !!

by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 4:01pm
मदारी !!
होटोंपे जब लाली थी
तब जेब अपनी खाली थी
खामोश थी निगाहे भी
दिल मैं हर एक सवाली थी
पेट भी खाली था दिल की तरह
सर्द होटों की भी लाली थी
सारा जहाँ देखकर भी
अपनी निगाहे खाली थी
जीना हम चाहते थे मगर
जीने कि राह खाली थी
क्यूँ की चाभी अपने तकदीर की
किसी मदारी के हाथ थी
तमाशा तकदीर का देखना
बस हमारी तकदीर थी !१
विकासिनी !!

Monday 5 September 2011

पंचप्राण !! by Vikasini Chavan on Monday, September 5, 2011 at 10:32am

पंचप्राण !!

by Vikasini Chavan on Monday, September 5, 2011 at 10:32am
पंचप्राण !!
तू जवळ नसताना तूच असशीजवळी  रे
तू जवळ असताना हृदयात वसशी तूच रे
जवळ काय, दूर काय मी तुझे  हृदयच रे
साठवशील किती जीवाचे नाजूक पंचप्राण रे
आरशातील प्रतिमा नाही मी मनातील मूर्त रे
चेहरा माझा गवसणे तुला नाही शक्य रे
हृदय माझे तूच अन मी तुझी मुर्त रे
शोधिसी फुका जळि ,स्थळि ,कष्टी, पाषाणी रे
साठवतान तुला हृदयात हरवेल माझे मी पण रे
अनाहूत या भीतीने गतप्राण होई पंचप्राण रे !
 विकासिनी !!

गुरुदक्षिणा !! by Vikasini Chavan on Sunday, September 4, 2011 at 2:00am

गुरुदक्षिणा !!

by Vikasini Chavan on Sunday, September 4, 2011 at 2:00am
गुरुदक्षिणा !!
शिकून सावरून खूप मोठा झालो
पण आजही इतका मोठा नाही झालो
कि गुरूची गुरु दक्षिणा देवू शकेन
शिकवणी ची फी दिली होती पण
शिकवण त्यांची मोठी होती
एकलव्य नाही होवू शकलो
एक एवढीच खंत होती
पुस्तकी ज्ञानाने मोठा झालो
पण सामान्य ज्ञानाच्या शाळेत नाही गेलो
गुरुचे ऋण फेडण्यात आजही अयशस्वीच ठरलो !!
विकासिनी !!

नीलीछत्री वाले !! by Vikasini Chavan on Saturday, September 3, 2011 at 2:10pm

नीलीछत्री वाले !!

by Vikasini Chavan on Saturday, September 3, 2011 at 2:10pm
नीलीछत्री वाले !!
बदलोंका  सतरंगी आचल लेके
बदलता है आसमा रंग कैसे कैसे
चाँद  सुरज तारोंकी गैर मौजुद्गिमें
दगा देती है  तक़दीर कैसे कैसे
नीली छत्री वाला भी कभी उधार
लेता है सूरज चंदा तारे कैसे कैसे
ये तो नीली छत्री वाले का कमाल है
बुला लिया है तेरी छत्री मैं मुजे कैसे कैसे
विकासिनी !!

व्यर्थ !! by Vikasini Chavan on Friday, September 2, 2011 at 12:13pm

व्यर्थ !!

by Vikasini Chavan on Friday, September 2, 2011 at 12:13pm
व्यर्थ !!
आपल्याच सावलीला अस्तित्व कुठले ?
ओसाड वाळवंटी कुठले बीज रुजणे ?
शुष्क हृदयातले अस्तित्व जीव घेणे
अंधारात सावलीला व्यर्थ शोधणे
रुधीर परी हे काष्ट्य होता हरपणे
कसे झाड हे पाण्याविन फुलणे !!
विकासिनी!!

हे जीणे !! by Vikasini Chavan on Friday, September 2, 2011 at 9:50am

हे जीणे !!

by Vikasini Chavan on Friday, September 2, 2011 at 9:50am
हे जीणे !!
नको हे सारे भासातले जीणे
कसे जगावे श्वासातले असणे
श्वास कोंडूनी उछ्वासात गुदमरणे
शब्दांचे शब्दातील असे जीणे
साहवेना अभासातील हे हसणे
प्राणपाखराचे हे पंख असून नसणे
बांडगुळा परी असे हे जगणे
गर्भात प्राणाचे अस्तित्व साहणे
हृदय कवाडे हि बंद श्वासात
पूजीन तुजला बंद हृदयात
विकासिनी !!

नमन तूज माझे गणपती !! by Vikasini Chavan on Thursday, September 1, 2011 at 1:33pm

नमन तूज माझे गणपती !!

by Vikasini Chavan on Thursday, September 1, 2011 at 1:33pm
गजाजना मधुसुदना
तूच पंचप्राण दाता
तूच  तू  इकदंता
तूच सकलांचा त्राता
तूच जाणता नेणता
तूच तू अजाणता
तूज अर्पण पंचप्राण
तूज अर्पण हृदयकमल
तूज अर्पण नेत्रज्योती
नमन तूज माझे गणपती !!
विकासिनी!!