गहराइ रिश्तोंकी !!
by Vikasini Chavan on Sunday, September 18, 2011 at 3:02pm
यू तो कैसे कैसे रिश्ते बनते है
और बना लेता है कैसे हर कोई
दिलके रिश्तोंकी गहराइया समज़ना
आम इन्सान के बस की बात नहीं
जख्म खाओगे दिलपे लाख
मगर दिल का जख्म समज़ना
हर किसीके बस की बात नहीं
रंजिशे दिल समज़ना
हर किसीको आता नहीं
रिश्तों के इस बाज़ार मैं
दिल तनहा है हर वक्त
फिर भी हरदम धड़कना
इसकी आदत तो है नहीं
काफ़िर निगाहे भी
बोलती है बहोत कुछ
शब्दोसे बाया करने की
किसीको जरूरत तो है नहीं
विकासिनी!!
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